मंगलवार, 4 मार्च 2014

करुणा और कांग्रेस 
भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष करूणा शुक्ला के कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस के अंदरूनी समीकरण में बड़े बदलाव की उम्मीद की जा रही है। उन्हें कांग्रेस में लाने में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का बड़ा हाथ माना जा रहा है। उनके कांग्रेस प्रवेश के मौके पर जोगी खास तौर पर मौजूद थे।जोगी के इस दांव के अब कई मायने तलाशे जा रहे हैं। करूणा ने 2004 में महंत को जांजगीर से हराया था,तो जोगी के करीबी माने जाने वाले कई नेता भाजपा में शामिल हुए थे, जो बाद में भाजपा की राजनीति में कभी सक्रिय नजर नहीं आए । हालांकि 2009 में महंत ने कोरबा सीट से करूणा शुक्ला को हराकर अपनी हार का बदला ले लिया और अब करूणा को कांग्रेस में लाने का श्रेय भी महंत नहीं लेना चाहते। करूणा के कांग्रेस में आने के साथ ही उनकी बिलासपुर सीट से दावेदारी भी सामने आने लगी है। कांग्रेस के लिए कठिन मानी जा रही इस सीट से पार्टी संगठन जोगी को मैदान में उतारना चाहता है। यदि करूणा को बिलासपुर से उम्मीदवार बनाया जाता है तो दुर्ग से रविंद्र चौबे और प्रदीप चौबे और महासमुंद से प्रतिभा पांडेय की दावेदारी पर इसका सीधा असर पड़ेगा, जो राजनीतिक रूप से जोगी विरोधी माने जाते हैं। जोगी ने जिस तरह करूणा शुक्ला का कांग्रेस में आने का स्वागत किया है, उससे समझा जा सकता है कि वे बिलासपुर से करूणा की उम्मीदवारी का समर्थन ही करेंगे। अटल विहारी वाजपेयी की भतीजी को कांग्रेस चुनाव लड़ाकर देशभर में संदेश देना चाहेगी और बदले में जोगी मनचाही सीट मांग सकते हैं। कहा जाता है कि इस बार उनकी नजर कांकेर सीट पर है। वहीं करूणा की उम्मीदवारी तय होने पर जातीय समीकरण के मद्देनजर कई बड़े नेताओं के मंसूबों पर पानी फिर सकता है।

रविवार, 10 जुलाई 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ हो पदयात्रा...

राहुल गांधी की पदयात्रा को मीडिया ने खूब महिमा मंडित किया। क्या इस देश में ख़बरों का टोटा पड़ गया था, जो मीडिया राहुल गांधी के पीछे भागे जा रहा था। जो न कि प्रधानमंत्री हैं और न ही किसी राज्य के मुख्यमंत्री और न ही उन जैसे किसी पोस्ट की शोभा बढ़ा रहे हैं। राहुल गांधी तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव हैं। कांग्रेस पार्टी में और भी महासचिव हैं पर मीडिया तो उन पर फोकस नहीं करती है। देशवासियों को राहुल गांधी से क्या लेना देना। क्या गांधी परिवार में पैदा होना ही महानता की निशानी है? अगर ऐसा है तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बेटों को तरजीह क्यों नहीं दी गई। जब मैने इन सवालों का जवाब ढुंढने की कोशिश की तो पता चला कि राहुल गांधी को उनकी पार्टी अगले प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है। इसलिए कांग्रेस में राहुल को आंधी समझा जाता है। रही बात मीडिया की तो वो वहां पर भी कुछ ऐसे लोग विराजमान हैं जो समझते हैं कि राहुल प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो उनका बल्ले-बल्ले हो जाएगा। लिहाजा मीडिया राहुल पर अपना ध्यान केन्द्रित करती है ऐसा मुझे लगता है। लेकिन ये तो भविष्य ही बताएगा की राहुल की ऊंट किस करवाट बैठेगी। राहुल जी आप यूपी की राजनीति में लगे हुए हैं। क्या आपको उत्तरप्रदेश का सीएम बनना है?  पूरा देश इस बात को जानता है कि अगले साल यूपी में चुनाव होना है। इसलिए आप किसानों के चहेते बनकर आगे आ रहे हैं। लेकिन देशवाशी तो पूरी देश की समस्या केन्द्र सरकार के सामने लागने की मांग कर रहे हैं। और आप हैं कि यूपी के पीछे पड़े हुए हैं। हम सब जानते हैं कि लोकसभा में किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा सीट उत्तरप्रदेश में ही है। वहां के परिणाम देश की राजनीति की दिशा और दशा तय करते हैं। बावजूद इसके देश के नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पूरे देश में किसानों के साथ शोषण हो रहा है। हर राज्य औद्योगिक विकास के चक्कर में किसानों की ऊपजाउ भूमि को छिनने में लगा हुआ है। बदले में किसानों को पकड़ाए जा रहे हैं कागज के चंद तुकड़े। तमिलनाडू से लेकर जम्मू-काश्मीर तक, अरुणांचल से लेकर गुजरात तक किसानों की यही दशा है। आप लोगों के हमदर्द बनने के लिए पदयात्रा कर रहे हैं। आम लोगों से मिल रहे हैं। किसी गरीब किसान के घर रात बिता रहे हैं। ऐसा करके आप उनके दुख औऱ दर्द को महसूस करने की कोशिस कर रहे हैं। लेकन यहां पर सवाल ये है कि आपने अब तक कितने किसानों को उनके कष्ट से मुक्ति दिलाई है। कलावती के घर रात बिताने के बाद संसद में उसका नाम लेने से देश के किसानों की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। देश की 80 फीसदी जनता गरीब है। गरीब और गरीब होते जा रहा है। नेता गरीबी हटाओ की जगह में गरीब हटाने के जुमले पढ़ते नजर आते हैं। वे किसी गरीब को अपनी चौखट पर कदम नहीं रखने देना चाहते हैं। चुनाव के वक्त भले ही वो उनके दर पर माथा टेकने से भी परहेज नहीं करते हैं। एक वक्त था जब महात्मा गांधी ने देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्ति दिलाई थी। इसके लिए उन्हे कितने कष्ट और अपमान मिले ये तो हमने सिर्फ किताबों में पढ़ा और फिल्मों में देखा है। उस वक्त भी देश में कई समस्याए थी लेकिन वो समस्या अंग्रेजों की गुलामी से बड़ी नहीं थी। इसी तरह इस वक्त देश भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा हुआ है। दिनों दिन गर्त की ओर जा रहा है। अन्ना हजारे, बाबा रामदेव जैसे लोग जब इस मुद्दे पर ठोस कानून बनाने की पैरवी करने के लिए आंदोलन कर सकते हैं तो फिर आप  ऐसे आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा क्यों नहीं लेते हैं। अगर आप इस मुद्दे पर आप आगे आएंगे तो यकीन मानिए पूरा देश आपके साथ खड़ा होगा। जैसा देश को आजादी दिलाने के लिए लोग महात्मा गांधी के साथ थे। राहुलजी पूरा देश आपसे उम्मीद करता है कि आप भ्रष्टाचार के मुद्दे को उझालें। हो सके तो भ्रष्टाचार के खिलाफ पदयात्रा करें... 

सोमवार, 27 जून 2011

छत्तीसगढ़िया सबले बढिया... फेर काहे के सरम..?

छत्तीसगढ़ी बोली ल राजभाषा के दरजा मिले तीन बछर ले जादा के समय बीते जात हे, फेर इहां के रहइया मन छत्तीसगढ़ी बोले म समाथें। लोगन के मन म ये धारना बइठ गे हे के छत्तीसगढ़ी बोले ले वो गवइहां हो जाही। अऊ कुछ अइसनहे समझ हे इहां के लोगन के। छत्तीसगढ़ी बोली बोले वाला के संग म गलत बेवहार करे जाथे। फेर एक बात मे ह आप मन के आगु म रखत हवं। ये बात म थोड़कुन गौर करिहव, तीन बछर पहिली मे ह देस के एक अइसे राज्य म गए अऊ तीन बछर ऊहां रहेव जौन राज्य के निरमान भाषा के आधार म सबले आगु होए रहिस मोर कहे के मतलब हे आंध्रप्रदेस जिंहा तेलगू बोले जाथे अऊ इहां के रहवइया मन ल न तो कोनो तरह के सरम आए न ही कोनो तरत के झिझक। इहां त  हिन्दी अऊ अंग्रेजी बोले वाला मन ल छोटे नजर ले देखे जाथे। ये ह देस के एक्केच राज्य नो हए जिंहा ये तरीका के हालत हे। बंगाल, असम, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओड़ीसा अऊ कई अऊ राज्य हे जिहां के लोगन मन उहां के बोली या भाखा ल बोले म नइ सरमावय। फेर छत्तीसगढ़िया काहे सरमाथे छत्तीसगढ़ी बोले म ये ह सोचे के बिसय हे। ये बोली ह आम जन भाखा कब बनही, ये घलो सोचे के बिसय हे। सरकार ल घलो सोचना पड़ही। राजभाषा भर के दरजा देहे ले सरकार के काम ह खतम नइ हो जावए। सरकार ल एकर प्रचार-प्रसार बर पूरा जोर लगाना पड़ही। मंच ले भाषन देत "छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया" कहे ले काम नइ बनय। छत्तीसगढ़ी ल जन-जन के भाषा बनाए बर पूरा जोर लगाए ल पड़ही।  संग म इहां के लोगन ल सरम अऊ झिझक घलो ल छोड़े ल पड़ही। तब जाके छत्तीसगढ़ी ह आम जन के भाषा बन पाही। नइ तो राज ठाकरे जइसे कोनो छत्तीसढ़िया ल रुप धरे ल पड़ही जेकर ले छत्तीसगढ़ के कल्यान होही। मै ये जानत हंव के सरकार ह छत्तीसगढ़ी बोली ल बढ़ावा दे बर छत्तीसगढ़ी के किस्सा कहिना ल पाठ्य पुस्तक म जोड़े हे। संग म रेलवे इस्टेसन घलो म अब छत्तीसगढ़ी ले एनाउंस होय ल सुरू कर दे हे। अऊ त अऊ इहां के कुछ राजनीतिक पार्टी के दबाव म मोबाइल कंपनी मन घलो छत्तीसगढ़ी म गोठियाय ल धर ले हें। फेर हम सब ल जुर मिल के ये बोली ल जन जन के बोली बनाए बर काम करे ल पड़ही। मोर हर छत्तीसगढ़िया ले निवेदन हे के वो छत्तीसगढ़ी बोली के प्रचार प्रसार म जोर दे। मै ह आप मन ल बता दव के मै ह रोज छत्तीसगढ़ी म समाचार लिखथव अऊ प्रदेस के जनता के बीच ओकर प्रसान घलो होथे। एकर पहिली मै ह हिन्दी म समाचार लिखे के काम करत रहेंव फेर मोला वो मजा नइ आत रहिस हे जेन अब आथे। जय छत्तीसगढ़, जय-जय छत्तीसगढ़

रविवार, 26 जून 2011

क्या है दिशा और दशा ?

भ्रष्टाचार का कैसे मुकाबला किया जाए. इस मुद्दे पर इन दिनों देश में बहस छड़ी हुई है. बहस और प्रदर्शन ऐसा कि इस पर देश के दिग्गज हस्तियां दांव आजमा रही है. अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश और इन सब के साथ है पूरा देश. कुछ तो इस मुहिम में जुड़कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं. वो भी हमारे ही देश के नागरीक हैं. भ्रष्टाचार करने वाले भी हमारे ही देश हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकेगी...? क्या वास्तव में लोकपाल बिल बन जाने के बाद इस पर लगाम लगेगा...? क्या भ्रष्टाचार की दीमकों में कानून का ख़ौफ रहेगा...? क्या कानून इस पर पूरी इमानदारी से अमल किया जाएगा...? क्या कोई भी इस बात की गारंटी लेगा की इस कानून का देश में मजाक नहीं बनाया जाएगा जैसा कि अन्य कानून के साथ होता है...? हम मानते हैं कि अब भी देश में इमानदार लोगों की कमी नहीं है. लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भ्राष्टाचारियों का बोलाबाला है। न्यायपालिका हो या फिर कार्यपालिका सभी जगहों पर भ्रष्टाचार के दीमकों ने अपनी पैठ बना रखे हैं। इसे खत्म करना वैसा ही काम है जैसा कि दूध में से पानी को अलग करना. दूध में पानी की मिलावट की जांच के लिए लेक्टोमीटर तो बन गया है. फिरभी दूध को पानी से अलग करने की अब तक कोई युक्ति नहीं बनी है. ऐसा ही कुछ हाल मुझे इस देश का लगता है. हर कोई जानता है कि फला जगह पर भ्रष्टाचार हो रहा है. ये काम गैरकानूनी है. ऐसा करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए. बावजूद इसके इन पर लगाम नहीं लगाया जा सका है। बात अगर भ्रष्टाचार की कहानी की करें तो ये इतनी लंबी हो चुकी है अगर इसे लिखना शुरू किया जाए तो देश की स्याही खत्म हो जाएगी और कागज कम पड़ जाएंगे. लेकिन इन भ्रष्टाचारियों के कारनामे कम नहीं पड़ेंगे. शायद देश का कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जिसका सामना भ्रष्टाचार से नहीं हुआ होगा. इसके बाद भी अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुए देश को छह दशक बीत गए हैं लेकिन कानून का किसी को खौफ नजर नहीं आता है। इस पर अंकुश लगाने के लिए आखिर कवायद शुरू हो चुकी है। जिस प्रकार क्रिकेट के मैच के दौरान पूरा देश एक नजर आता है वैसा ही लोकपाल बिल के मसौदे पर पूरा देश एक दिख रहा है। हर कोई भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहता है। वो चाहे कैसे भी हो।

सोमवार, 20 जून 2011

इस भगवान से बचके रहना !

धरती के भगवान के रूप में डॉक्टर पहचाने जाते हैं। लेकिन इन दिनों डॉक्टर के महान पेशा को मुट्ठी भर लोग बदनाम करने के फिराक में लगे हुए हैं। इसका एक नमूना छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। यहां पर इस महान पेशे से जुड़ने के लिए छात्र अब फर्जीवाड़ा का सहारा लेने की जुगत में जुटे चुके हैं। छत्तीसगढ़ पीएमटी का पर्चा एक ही साल में दो बार लीक होना इसका पुख्ता सुबूत है। बिना पढ़े लिखे लोग डॉक्टर बन रुपये कमाने की फिराक में धांधली करने से बाज नहीं आ रहे हैं। जो लोग फर्जीवाड़े के इस धंधे में शामिल हैं उनमें कुछ डॉक्टर भी शामिल हैं। लोगों के बीच डॉक्टर भगवान की तरह पूजे जाते हैं। साथ ही डॉक्टर्स के पास अकूत धन संपदा भी होती है। इस धन संपदा को डॉक्टर अपनी कड़ी मेहनत के जरिए इकट्ठा करते हैं। धन से परिपूर्ण होने के कारन आधुनिक सुख सुविधा की भी इनके पास कमी नहीं होती है। इसे ही देखकर लोग धरती का भगवान बनना चाहते

हैं लेकिन शार्ट कट तरीके से। लोग बिना मेहनत किए वो सारी सुख अर्जित करना चाहते हैं जो उन्होने डॉक्टर्स के पास देखा है। शार्ट कट के चक्कर में लोग ये भूल बैठते हैं कि कौन सा रास्ता सही है और कौन सा रास्ता ग़लत है। शायद शार्ट कर तरीके से डॉक्टर बने लोग ही इस पेशे को बदनाम करते हैं। जिसकी वजह से आज धरती का ये भगवान बदनाम हो रहा है। और बदनामी देने वालों में उसी बिरादरी के कुछ लोग भी शामिल है। आज जरूरत इस बात की है कि बच्चे इमानदारी से पढ़े और डॉक्टर बनकर इस पेशे को हिमालय से भी ज्यादा उंचाई दें। सूरज से भी ज्यादा चमकदार बनाए और फूर की तरह खुशबूदार बनकर इस संसार को महकाएं। नहीं तो लोग तो यही कहेंगे इस भगवान से बचके रहना...

बुधवार, 18 मई 2011

बेटियों ने तोड़ी बेड़ियां

तारीख 16 मई साल 2011 को दुर्ग में एक अंतिम यात्री निकली जो कई मायनों में औरों से अलग थी। इस अंतिम यात्रा ने सदियों से रूढ़ियों में जकड़े सामाज को सोचने को मजबूर कर दिया। हालांकि ये कोई पहला वाकया नहीं है। फिर भी ऐसे नजारे विरले ही देखनें को मिलती है। जब बेटियां अपने पिता के अर्थी को कंधा दे और अंतिम क्रिया कर्म करे। रेलवे कॉलोनी में रहने वाले आनंद मोहन दुले की सिर्फ तीन बेटियां हैं। उनकी इच्छा थी कि उनके निधन के बाद उनकी बेटियां ही चिता को मुखाग्नि दें। लिहाजा इन बेटियों ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी की और पूरे विधि विधान से अंतिम क्रियाकर्म किया। मजाक में कही गई बातों को इन बेटियों ने कभी नहीं भुलाया और जब पापा दुनिया से रुखसत हुए तो इन्होने अपने फर्ज को पूरा करके मिसाल कायम कर दी। लड़कियों के लिए वर्जित माने जाने वाले श्मशान ने भी इन बेटियों के कदम पड़ने पर खुद को धन्य महसूस किया होगा। और जलती चिता के साथ सदियों पुरानी रुढ़ियां भी खाक हो गई। अवंतिका, अनामिका औऱ आनंदिता ने अपना फर्ज निभाने के साथ ही समाज को एक बड़ा सबक भी दे दिया।

शनिवार, 14 मई 2011

दीदी की दहाड़

आखिरकार 34 साल से चले आ रहे लेफ्ट के शासन को ममता ने लेफ्ट(बांए) में धकेल दिया है। तीन चौथाई सीट पर कब्जा जमाकर ममता अब बंगाल की दीदी से दादा बन गई है। लेकिन ये बात गौर करने वाली है कि लोग 34 साल से चले आ रहे वाम दल के राज से ऊब गए थे। वो भी परिवर्तन चाहते थे। लिहाजा उन्होने ममता दीदी पर अपनी ममता उड़ेल दी है। अब ममता को भी लोगों की ममता का ध्यान रखाना होगा और अपनी तुनकमिजाजी पर नियंत्रण कर शालीनता की पहचान देते हुए प्रदेश की जनता को सुशासन देना होगा। बंगाल को उन राज्यों की श्रेणी में सुमार करना होगा जो आज विकास की नई इबारत लिख रहे हैं। बंगाल में बदलाव की बयार इस ओर संकेत देती है कि लोग 34 सालों से चले आ रहे सुर्ख लाल की लाली से मुक्ति चाहते हैं और अपने प्रदेश में हरियाली की वो बहार देखना चाहते हैं, जिसके लिए वो तरस रहे थे।